Thursday, December 13, 2007

१३ दिसम्बर सहीदों के नाम

एक शेर अब सहीदों के नाम १३ दिसम्बर के आगमन पर


दे के अपनी जान तुम महफूज़ हमको कर गए
पर वतन के रहनुमा अपनी जुबा से फिर गए
आसमां पर जो तिरंगा शान से तुमने रखा
रंग उसके बादलों से नीर बन कर गिर गए

Saturday, December 8, 2007

आशा और निराशा

जिस तरह अंधकार और प्रकाश दोनों ही विद्यमान है जीवन में
उसी तरह आशा और निराशा दोनों ही होती है मन मे
और दोनों में भी परस्पर युद्ध होता रहता है

निराशा ख़ुद अपनी ही हार का कारण होती है
और आशा केवल परिश्रम मात्र से जीत जाती है

- अजय कानोडिया

इस पाप की नगरी वालों ने, हमको क्या-क्या सिखलाया है

इस पाप की नगरी वालों ने, हमको क्या-क्या सिखलाया है
निर्बल के ऊपर हमने सदा, देखो जुल्मो का साया है


कुछ आदर्शों के फूल लिए चाहतें दुष्टों से टकराए

पर बात यह दुनियावालो जा कर कोई उनको बतलाए

कोशिश तो करनी है लेकिन हमने तो सदा यही पाया है

फूलों को देखा मुरझाते कांटा न कभी मुरझाया है

इस पाप की नगरी वालों ने, हमको क्या-क्या सिखलाया है


हर तरफ़ यहाँ पर भेद-भाव की उंच-नीच की है रेखा

मजहब के नाम पर लड़ते हुए लोगो को यहाँ हमने देखा

अब कौन उन्हें समझाए भला, हमने तो बहुत समझाया है

है नाम अलग पर इश्वर एक, वो रूप बदल कर आया है

इस पाप की नगरी वालों ने, हमको क्या-क्या सिखलाया है


-सादर
अजय कानोडिया

Tuesday, December 4, 2007

दिल में ही बस मैं शम्मा जलाता रहा

दिल में ही बस मैं शम्मा जलाता रहा
मन ही मन प्यार के गीत गाता रहा
यूं अँधेरा हुआ दूर मन का मेरा
गीत जुगनू बना जगमगाता रहा

वो चुभन जाने दिल में कैसी लगी
जब भी देखा तुम्हे, शम्मा ख़ुद जग उठी
गीत ख़ुद ही स्वयं को बनने लगे
और मैं बस उन्हें गुनगुनाता रहा
मन ही मन प्यार के गीत गाता रहा

रौशनी की जरूरत तुम्हे तो न है
रौशनी की किरण तू स्वयं ही तो है
तेरे आने से मन में उजाला हुआ
और मैं बस तुम्ही को चाहता रहा
मन ही मन प्यार के गीत गाता रहा

दिल की हर धडकनों में तेरा नाम है
दिल है गुलशन मेरा, तू ही गुलाफामा है
दिल महकता रहें प्यार से ये सदा
स्वप्न ऐसे ही हूँ मैं सजाता रहा
मन ही मन प्यार के गीत गाता रहा

डरता हूँ बात कहने को मैं वो मगर
कैसे थामे रखू मैं ये घायल जिगर
सोचता हूँ बता दूँ तुम्हे बात वो
आज तक था जो तुमसे छुपता रहा
मन ही मन प्यार के गीत गता रहा

- अजय कानोडिया

माँ बलि चाहती है

हमारे घर के सामने नित्य प्रति ,
कई बकरे बलि की वेदी पर चढाए जा रहे है
और बलि देने वाले, बलि देने से जरा भी नहीं घबरा रहे है

वे समझते है कि किसी कि बलि देने से, माँ प्रसन्न हो जायेगी
और उनके पाप कुछ घट जाएंगे
परन्तु वे यह नहीं सोचते कि किसी निर्दोष और असाहय की हत्या करने से
उनके पाप कितने बढ़ जाएंगे

लेकिन आजकल की दुनिया ही कुछ ऐसी है,
यहाँ लोहा लोहे को काटता है ,
हीरा हीरे को काटता है
और यहीं पर मानव पाप को पाप से काटने कि कोशिश कर रहा है
यद्यपि पाप हमेशा ही हारा है,
फिर भी मानव यह पाप करने से जरा भी नहीं डर रहा है

मैं यह नहीं कहता कि देवी माँ बलि नहीं चाहती
माँ बलि अवश्य चाहती है
लेकिन किसी निर्दोष और असहाय जीव की नहीं

माँ बलि चाहती है हिन्सा की
जो मनुष्य के रोम रोम में समाती जा रही है
माँ बलि चाहती है ईर्ष्या की
जो मनुष्य के प्रति मनुष्य में द्वेष भाव जगा रही है
माँ बलि चाहती है अधर्म की
जो धर्म को सर्वनाश के गर्क में डुबोती जा रही है
माँ बलि चाहती है, हमारे उन रस्मो रिवाज की
जो बलवान को तो कुछ नहीं कहते,
और बलहीन को भीतर ही भीतर खोकला बनाती जा रही है

केवल मैं ही नहीं, धरती, आकाश, पेड़ , पौधे, पशु, पक्षी
सभी चिल्ला चिल्ला कर यहीं कह रहे है

केवल मैं ही नहीं, धरती, आकाश, पेड़ , पौधे, पशु, पक्षी
सभी चिल्ला चिल्ला कर यहीं कह रहे है

माँ बलि चाहती है मनुष्य में छुपे उन सभी अव्गुनो की
जो मनुष्य को मनुष्य की तरह जीने नहीं दे रहें है
जो मनुष्य को मनुष्य की तरह जीने नहीं दे रहें है

-अजय कानोडिया

चले आओ रे अब गोपाला

भगवन श्री कृष्ण के बारे में कहा जाता है की , वह जब गोकुल
से मथुरा गए और जहाँ उन्होंने कंस का संहार किया , उसके उपरांत वह
कभी गोकुल नहीं गए दोबारा

मैंने प्रयत्न किया है श्री कृष्ण के जाने के बाद गोकुल
के लोगो की भावनाओ को एक रचना में रचन का ,



गिरिधर कहाँ तू चला रे
सुना जग कर चला रे
गोकुल के जन ये पुकारे
कान्हा आएगा कब दोबारा

था कभी बांसुरी बजाये ,
राधा को था तू रिझाए
राधा का मन अब न भाए
जाने आएगा कब मुर्लिवाला

गोपी खेलन ना जाए
ना ही माखन चुराए
वो तो देखे है बस राहें
जाने आएगा कब गोपाला

गोए सुखी सब है जाए
वो तो तिनका भी ना खाए
दूध किसे वो पिलाये
जाने कहाँ गया गोकुल का ग्वाला

माता भोजन पकाए
देखो माखन बंनाये
लेकिन दर पे है निगाहे
जाने आएगा कब नंदलाला

सबके नैन थक गए
नैनन से आंशु है बहे
मोहन देर क्यों भये
सभी ढूंढे है तेरा सहारा

गिरिधर आ जाओ फिर से दोबारा
चले आओ रे नन्द के लाला
चले आओ रे हो मुर्लिवाला
चले आओ रे गोकुल के ग्वाला
चले आओ रे अब गोपाला

- अजय कानोडिया